यज्ञशाला तथा सभा- भवन :-

1.गुरुकुल के मध्य में एक सुन्दर भव्य यज्ञशाला है। विक्रमी संवत्‌ 956 में आये भयंकर अकाल के समय खोदे गये “ महेन्द्र-सरोवर” के टीले पर यह यज्ञशाला स्थित है। यह यज्ञशाला एक ऐतिहासिक स्थान पर अवस्थित है, जिसमें बैठकर ब्रह्मचारी प्रतिदिन सन्ध्या-हवन और  अध्यात्म-चर्चा करते हैं। यज्ञशाला के सम्मुख श्रेष्ठिवर्य दानवीर स्व० श्री रामधारी जी आर्य (काठमण्डी,हिसार) के सुपुत्रों के द्वारा अपने पूज्य पिता जी की स्मृति में गुरुकुल के भव्य मुख्य द्वार एवं एकविशाल पानी की टंकी का निर्माण करवाया गया है।

2. ऐसे ही 56४ 32' का एक विशाल सभा-भवन भी है, जिसमें विभिन्‍न सभाओं का आयोजन किया जाता है। विद्वानों के प्रवचन, भजन तथा त्योहारों को मनाने का आयोजन इसी भवन में ही किया जाता है। इसमें छात्रों के शयन व अध्ययनादि की व्यवस्था भी की जाती है।

अपनी कुछ सेवाएं अर्पित ली वहाँ विद्वानों के संग से आप विद्यार्जन भी करते रहे। परन्तु इतने मात्र से आप संतुष्ट नहीं हुए, अपितु आपके मन में एक लगन थी की हिसार मंडल में वैदिक सिद्धांतो तथा संस्कृत भाषा का प्रचार और प्रसार एक गुरुकुल की स्थापना के बिना अधूरा है। इसी लगन के परिणामस्वरूप गुरुकुल आर्यनगर की स्थापना की गयी जिसका विशेष वृतांत आगे दिया जा रहा है।

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