Mission

मानव परमात्मा की अद्वितीय रचना है, किन्तु मानव, मानवाकृति मात्र नहीं है। अनादि-अनन्त- आत्मतत्त्व उसका अस्तित्व है। मानवता ही धर्म तथा धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष उसके प्राप्तव्य हैं। ईश्वर प्रदत्त पवित्र वैदिक-मार्ग का अनुगमन किये बिना वास्तविक अर्थ में मानव, मानव नहीं है। अतः हमें सावधान करता हुआ वेद आदेश देता है- “ मनुर्भव” | अभ्युद्य और  निःश्रेयस में मानवता का जो यह परिपूर्ण विकास, यह इतना सहज और स्वाभाविक नहीं जितना कि एक पुष्प का प्रस्फुटित होना। फूल के खिलने में फूल का अपना कोई प्रयास नहीं होता। परन्तु मनुष्य को मनुष्यत्व के विकास में प्रबल संघर्ष, परम परिश्रम और अपार संयम का इतिहास रचना पड़ता है। एक मानव शिशु को चिकित्सक या अभियन्ता बनाने में उतनी कठिनता नहीं है जितनी कठिनता उसको एक सम्पूर्ण इन्सान बनाने में है। विद्वानू, धनवान्‌ और शक्तिमान्‌ बनना कठिन जरूर है किन्तु एक इन्सान बनना उससे भी कठिन है। आज के इस भौतिक युग में मानव-निर्माण के इस परमावश्यक और सुकठिन कार्य का भार न तो कोई संस्था न ही कोई सरकार वहन कर रही है। साम्प्रतिक सभ्यता के सभ्य जनों को इस बात का ख्याल तक नहीं आता है। संकट की इस घड़ी में वैदिक आर्षप्रणाली की शिक्षण संस्थाएँ निश्चित रूप से समाज के सजग प्रहरी के रूप में विद्यमान हैं। समाज सेवा और सुधार में संलिप्त इन गुरुकुल प्रणाली की संस्थाओं ने प्राचीनकाल से अद्यावधि मानव निर्माण की अमर ज्योति को विपरीत स्थितियों के बावजूद जलाये रखा है। ये संस्थाएँ समाज और संस्कृति की धरोहर हैं, आधार हैं तथा रक्षक हैं जिन्होंने अपनी आत्माहुति और अमूल्य योगदान से समाज को बिखेरने से रोक लिया। परम पवित्र इन वैदिक संस्थाओं ने सूर्य प्रकाश के अभाव में मध्य रात्रि के गहन तम में भी टिमटिमाते तारों के समान कभी न बुझने वाले प्रकाश को प्रकाशित किया। ठीक ही तो कहा है कि-“ अँधेरे में उजाले का निशां हैं, ये जुगनू आफताबों से बड़े हैं॥" भद्गपुरुषो! ऐसी महत्त्वपूर्ण संस्थाओं में गुरुकुल आर्यनगर (हिसार) अन्यतम है। संस्था-शिरोमणि इस गुरुकुल ने हरियाणा प्रान्त के हिसार की पवित्र भूमि पर अपना गगनचुम्बी मस्तक खड़ा किया है। शहर और ग्राम दोनों से दूर रहकर यह स्थान अपने आप में साधना का निर्जन निकुज्ज है। छोटी सी नहर की धारा के साथ गंभीर-ज्ञान-तरंगों का यह संगम है। आध्यात्मिक उन्नति में सहायक यह रमणीय स्थान सम्पूर्ण प्रदूषण रहित, स्वच्छ और स्वास्थ्यप्रद है। प्रातः-सायं अज्ञाग्नि निर्गत सुगन्धि ग्राम-ग्रामान्तरों में वैदिक सन्देश फैलाती है। यहाँ आदर्श आचार्यों कीचरण-शरण में ब्रह्मचारी ज्ञानामृत पान कर अपने जीवन को धन्य बनाते हैं। आदर्श दिनचर्या, चरित्र निर्माण, देश भक्ति इत्यादि विशेषताओं से पूर्ण शिक्षाओं से सम्पन्न मानो यह एक साम्राज्य है। इस गुरुकुल के सुयोग्य स्नातक देश के विभिन्न स्थानों में वैदिक धर्म के प्रचार-प्रसार और शिक्षा के क्षेत्र में उपलब्धियों को हासिल करने में सफल हुए हैं। पिछले कई दशकों से समर्पित आचार्यों के मार्गदर्शन और प्रबन्ध सभा के सहयोग से यह संस्था जन कल्याण के उद्देश्य को सामने रख कर समाज में संस्कार , सुधार और सेवा कार्यो के लिए भगीरथ-प्रयास करती हुईं हरियाणा का गौरव बढ़ा रही है। सज्जनों) यह आपकी अपनी संस्था है। इसकी प्रगति के पीछे आपके ही हाथ हैं। इसकी निर्विघ्न गतिशीलता संस्था के प्रति आपके प्रेम और सहयोग का ही परिचायक है। आशा है, आगे भी इसी प्रकार आप की कृपा वृष्टि होती रहेगी, जिससे कि यह गुरुकुल रूपी वृक्ष सुरक्षित और संवर्धित होता हुआ फूलता-फलता रहे और प्राचीन नालन्दा का रूप धारण कर संसार में वैदिक-विजय-ध्वजा के नीचे एक स्वर्ग का निर्माण करे।

Vision


1.सी. सी .टी. वी. कैमरे एवं अन्य आधुनिक सुविधाओं से युक्त छात्रावास ।
2.खुला एवं हरा-भरा गुरुकुल परिसर ।
3.अनुशासित व नियमित दिनचर्या ।
4.योग एवं खेल गतिविधियाँ ।
5.बृहद्‌ पुस्तकालय एवं वाचनालय।
6.व्यक्तित्व विकास हेतु बाल सभाएँ।
7.आध्यात्मिक ज्ञान हेतु सन्ध्या-हवन व समय-समय पर वैदिक विद्वानों के उपदेश ।
8.छात्रों की आत्मनिर्भरतापरक जीवन शैली का निर्माण 
प्रशिक्षित व सुयोग्य अध्यापक ।
9.समय-समय पर स्वास्थ्य निरीक्षण ।
10.स्वच्छ व सादे भोजन की उत्तम व्यवस्था ।
11.बच्चों के दूध हेतु गोशाला।
12.प्राचीन व आधुनिक शिक्षा का संगम

अपनी कुछ सेवाएं अर्पित ली वहाँ विद्वानों के संग से आप विद्यार्जन भी करते रहे। परन्तु इतने मात्र से आप संतुष्ट नहीं हुए, अपितु आपके मन में एक लगन थी की हिसार मंडल में वैदिक सिद्धांतो तथा संस्कृत भाषा का प्रचार और प्रसार एक गुरुकुल की स्थापना के बिना अधूरा है। इसी लगन के परिणामस्वरूप गुरुकुल आर्यनगर की स्थापना की गयी जिसका विशेष वृतांत आगे दिया जा रहा है।

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